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पञ्चतन्त्रम्

Panchtantram

300.00

Subject : Kids moral Stories in Sanskrit
Edition : 2018
Publishing Year : 2018
SKU # : #N/A
ISBN : N/A
Packing : Hard Cover
Pages : 514
Dimensions : 14X22X4
Weight : 625
Binding : Hard Cover
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संस्कृत भाषा विश्व की सबसे प्राचीन एवं समृद्ध भाषा है। इसका अतिविशाल साहित्य जगत् के सभी पदार्थ एवं विषयों का निरूपित करने में सक्षम है। वेद वेदाङ्ग, पुराण, रामायण, महाभारत आदि विशालकाय ग्रन्थों की उपलब्धि के साथ-साथ इसमें लक्षणग्रन्थ, महाकाव्य, खण्डकाव्य, चम्पू, नाटक, रूपक एकांकी आदि सभी विधाओं के उत्कृष्टतम ग्रन्थ मिलते हैं। इसी में कथासाहित्य के भी मनोरम ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। इस कथासाहित्य का उद्देश्य आबालवृद्ध को मनोरंजनपूर्वक सरल कथाओं के माध्यम से लोकव्यवहार एवं नीतिशास्त्र का बोध कराना है। इसमें सरलता एवं सरता दोनों हैं क्योंकि इन कथाओं का प्रस्तुतिकरण मनुष्येतर पशु-पक्षियों के माध्यम से किया गया है।

कथासाहित्य से अभिप्राय- इसे नीतिकथा या आख्यानसाहित्य भी कहा जाता है। मानव स्वभाव से मनोरंजनप्रिय रहा है। बालपन से ही उसकी कथा-कहानियों में विशेष अभिरुन्नि रही है। उसकी इसी मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति को दृष्टिगत रखते हुए हमारे प्राचीन विद्वानों ने कथा कहानियों के माध्यम से सदाचार, राजनीति, एवं व्यावहारिक ज्ञान को प्रदान करने के लिए कथाओं की संरचना की तथा रोचकता की अभिवृद्धि के लिए पशुपक्षियों को इन कथाओं का पात्र बनाया। नीतिविषयक उपदेश की प्रधानता के कारण इसी को नीतिसाहित्य की संज्ञा भी प्रदान की गई। इसीलिए हितोपदेश के रचयिता ने कहा- “कथाच्छलेन बालानां नीतिस्तदिह कथ्यते” (हितोपदेश- | प्रस्तावना-८)

इस सम्पूर्ण साहित्य में कथा के माध्यम से नीति के रहस्यों से अवगत कराया गया है। इस प्रसङ्ग में एक बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इस कथासाहित्य को गद्यसाहित्य के ‘कथा’ नामक भेद से पूर्णतया भिन्न समझना चाहिए, क्योंकि वहाँ एक लम्बे कथानक को काव्यात्मक दृष्टि से निबद्ध किया जाता है। जबकि यहाँ एक ही कृति में अनेक छोटी-छोटी कथाओं को गुम्फित करते हैं। इनमें काव्यात्मकता की ओर विशेष ध्यान न देकर भावों की सम्प्रेषणता प्रमुख रहती है। भाषा की सरलता को यहाँ विशेष महत्त्व दिया जाता है।

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