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पुस्तक का नाम – काला पानी
लेखक का नाम – विनायक दामोदर सावरकर
सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के ग्राम भगूर में हुआ था। सावरकर जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव से प्राप्त करने के बाद वर्ष 1905 में नासिक से बी.ए. में हुआ।
9 जून 1906 को इंग्लैड़ के लिए रवाना हुए। इंडिया हाउस, लंदन में रहते हुए अनेक लेख व कविताएँ लिखीं। 1907 में 1957 का स्वातंत्र्य समर ग्रन्थ लिखना शुरू किया। प्रथम भारतीय, नागरिक जिन पर हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाया गया। प्रथम क्रांतिकारी, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा दो बार आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई। प्रथम साहित्यकार जिन्होनें लेखनी और कागज से वंचित होने पर भी अंडमान जेल की दीवारों पर कीलों, काँटों और यहां तक की नाखूनों से विपुल साहित्य का सृजन किया और ऐसी सहस्त्रों पंक्तियों को वर्षों तक कंठस्थ कराकर अपने सहबंदियों द्वारा देशवासियों तक पहुँचाया। प्रथम भारतीय लेखक, जिनकी पुस्तकें – मुद्रित व प्रकाशित होने से पूर्व ही – दो-दो सरकारों ने जब्त कीं।
इन्होनें अंडमान एवं रत्नागिरि की काल कोठरी में रहकर कमला, गोमांतक एवं विरहोच्छ्वास और हिन्दूत्व आदि ग्रन्थ लिखे। इनमें से प्रस्तुत पुस्तक काला पानी है।
काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि इसका नाम सुनते ही आदमी सिहर उठता है। काला पानी की विभीषिका, यातना एवं त्रासदी किसी नरक से कम नहीं थी। विनायक दामोदर सावरकर चूंकी वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अतः उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखो – देखे वर्णन का-सा पठन-सुख देता है।
इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का वर्णन है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानंक दंड भुगत रहे थे। काला पानी के कैदियों पर कैसे-कैसे नृशंस अत्याचार एवं क्रूरतापूर्ण व्यवहार किए जाते थे, उनका तथा वहाँ की नारकीय स्थितियों का इसमें त्रासद वर्णन है।
इसमें हत्यारों, लुटेंरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्र भी उकेरा गया है।
उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खडे़ हो जाते हैं।