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पुस्तक का नाम – चरक संहिता (दो भागों में सम्पूर्ण )
लेखक – डॉ.ब्रह्मानन्द त्रिपाठी
वेदों के उपवेद आयुर्वेद का महत्व हम सभी जानते है | आयुर्वेद केवल शरीर की चिकित्सा ही नही मन की भी चिकित्सा का विधान करता है | केवल औषधि द्वारा रोग की रोकथाम तक सीमित नही है बल्कि व्यक्ति व्यवहार ,आचरण और दिनचर्या का भी विधान करता है | चरक संहिता मूल रूप में महर्षि अग्निवेश कृत थी जिसे बाद में चरक और दृढबल ने प्रतिसंस्कृत किया | इस ग्रन्थ के अध्ययन से पता लगता है कि अपनी आप्तबुद्धि और क्रान्तिदर्शी प्रतिभा से ऋषियों ने जिन आधारभूत सूत्रों का निर्देश किया वे आज भी चिकित्सा सिद्धांतों के मानदंड को स्थापित करने में सक्षम है | इन महान विभूतियों के ऐसे ग्रंथों से हमे हमारे गौरवशाली अतीत की झलक मिलती है | प्रस्तुत व्याख्या हिंदी अनुवाद में होने से यह हिंदी समझने वाले पाठकों के लिए विशेष साहयक और उपयोगी है | इस पुस्तक में विस्तृत भूमिका द्वारा लेखक ने आयुर्वेद का इतिहास और अग्निवेश चरक आदि के काल का निर्णय आदि विषयों पर अपने विचार प्रकट किये है | विविध मान तालिकाएँ इस पुस्तक में दी है जिससे प्राचीन काल में प्रयुक्त मात्रक मानों का ज्ञान होगा | यह पुस्तक दो भागों में है प्रथम भाग में सूत्र स्थान ,विमान स्थान ,इन्द्रिय स्थान है | द्वितीय भाग में चिकित्सा स्थान ,कल्प, सिद्धि स्थान है | इस पुस्तक में यथा सम्भव चरक के गूढ़ स्थलों को प्रकट करने का प्रयास किया है | स्थल विशेष पर पारिभाषिक शब्दों के अंग्रेजी नाम दिए है | आवश्यकतानुसार प्रकरण विशेष पर आधुनिक चिकित्सा सिद्धांतों से तुलनात्मक दृष्टि से भी समावेश कर दिया गया है,जिससे पाठकों को विषय समझने में सुविधा हो साथ ही कठिन स्थलों को विशेष वक्तव्य तथा टिप्पणियों द्वारा प्राञ्जल किया गया है | शोधार्थियों और हिंदी भाषाई आयुर्वेद प्रेमियों के लिए यह ग्रन्थ अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा |