महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन चरित्र

Maharishi Dayanand Sarswati Ka Jeevan Charitra

Hindi Other(अन्य)
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  • By : Pandit Lekhram
  • Subject : Biography
  • Category : History
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महर्षि दयानन्द सरस्वती जीवन चरित्र

पुस्तक का नाम महर्षि दयानन्द सरस्वती जीवन चरित्र

महाभारत युद्ध के पाँच सहस्त्र वर्ष पश्चात् भारत में दयानन्द सरस्वती के रूप में एक महर्षि का प्रादुर्भाव हुआ। महर्षि दयानन्द का व्यक्तित्व अनुपम था। उनकी तुलना करना सम्भव नहीं। यदि यह कहा जाए कि वे सूर्य के समान थे तो बात जँचती नहीं, क्योंकि सूर्य ढलता है, यदि उन्हें चन्द्रमा से उपमित किया जाए तो चन्द्रमा घटता और बढ़ता है इन दोनो को ग्रहण भी लगता है। यदि उनकी समुद्र से उपमा की जाए तो भी बात ठीक नहीं है, क्योंकि समुद्र खारी है। हिमालय भी उनकी समता नहीं कर सकता, क्योंकि हिमालय गलता है। दयानन्द तो बस दयानन्द थे। 
महर्षि दयानन्द वेदोद्धारक, योगिराज और आदर्श सुधारक थे। महर्षि ने उस समय समाज में फैली सम्पूर्ण कुरीतियों का भरपूर खंड़न किया। महर्षि के साहित्य के साथ साथ उनका जीवन चरित्र भी अत्यन्त प्रेरणास्पद है। महर्षि पर अनेकों व्यक्तियों ने जीवन चरित्र लिखा। जिनमें पण्डित लेखराम जी, सत्यानन्द जी प्रमुख है किन्तु बंगाली सज्जन बाबू श्री देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय के द्वारा लिखी गई जीवन चरित्र की यह विशेषता है कि देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय जी स्वयं आर्यसमाजी नहीं थे फिर भी अत्यन्त श्रद्धावान होकर उन्होनें 15-16 वर्ष लगातार और सहस्त्रों रुपया व्यय करके ऋषि जीवन की सामग्री को एकत्र करके उन्होने महर्षि की प्रामाणिक और क्रमबद्ध जीवनी को लिखा। इस जीवनी के लेखन का कार्य देवयोग से पूर्ण नही हो पाया तथा देवेन्द्रनाथ जी की असामायिक मृत्यु हो गई तत्पश्चात् पं. लेखराम जी और सत्यानन्द जी द्वारा संग्रहित सामग्री की सहायता से पं. श्री घासीराम ने इसे पूर्ण किया। यह महर्षि की अत्यन्त प्रमाणिक जीवनी है। इस जीवनी की कुछ विशेषताऐं जो अन्यों में प्राप्त नहीं होती है – 
1) श्रीमद्दयानन्दप्रकाश के लेखक ने इस जीवनचरित्र से तथा देवेन्द्रबाबू द्वारा संग्रहित सामग्री से अत्यन्त लाभ उठाया तथा अपने ग्रन्थ श्रीमद्दयानन्दप्रकाश की रचना की।
2) पण्डित लेखराम का अनुसंधान विशेषकर पंजाब, यू.पी. और राजस्थान तक ही सीमित रहा। मुम्बई और बंगाल प्रान्त में न उन्होने अधिक भ्रमण किया और न अधिक अनुसन्धान किया, अतः इन दोनो प्रान्तों की घटनाओं का उनके ग्रन्थ में उतना विशद वर्णन नहीं है जितना पंजाब और यूंपी तथा राजस्थान की घटनाओं का है। देवेन्द्रनाथ जी के ग्रन्थ में मुम्बई और बंगाल का भी विस्तृत वर्णन है।
3) देवेन्द्रनाथ को जो सुविधा अंग्रेजी जानने के कारण थी वह पंडित लेखरामजी और न स्वामी सत्यानन्द जी को ही प्राप्त थी। अतः इस जीवन चरित्र में अंग्रेजी पत्रिकाओं और समाचार पत्रो आदि आंग्ला सामग्री का उपयोग किया गया है।

आशा है कि पाठक वर्ग इस ग्रन्थ से अत्यन्त लाभान्वित होगा।

 

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