
संस्कृतनिष्ठ *शब्दों* का प्रयोग करना हमारे बच्चे भूलते जा रहे हैं
- April 10, 2020
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यकीन* रखते हो *विश्वास* क्यों नहीं?
*ईमानदार* बनते हो *धर्मनिष्ठ* क्यों नहीं?
*तवज्जो* देते हैं *ध्यान* क्यों नहीं?
*मुकाम* निर्धारित करते हैं *लक्ष्य* क्यों नहीं?
आप अपनी संस्कृति से *वंचित* नहीं *महरूम* हो जाएँगे, आज आपको *आवश्यक* नहीं लगता तो कल आपकी संस्कृति की गाथा नहीं बचेगी बल्कि उसकी *दरकार* ही समाप्त हो जाएगी…
आज आप *निर्धनों* के समान शब्दों की कठिनता की बातें कर लें और *विभिन्न* बहाने बना लें कल आप स्वयं को *विभिन्नताओं* में नहीं *मुखतलिफ* *मुफलीसी* में घिरा पाएंगे…
आज आपको *इच्छा* नहीं होती की आप संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग आरंभ करें तो कल आपको जब *तलब* होगी तो बहुत *विलंब* नहीं *देर* हो चुकी होगी…
आज आप *बातचीत* में संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग वैसे ही करना आरंभ कर दें जैसे लोग *संविधान* को *आईन* में परिवर्तित कर रहे हैं नहीं तो कल आपकी *गुफ्तगू* कोई सुनने वाला नहीं बचेगा..
संस्कृतनिष्ठ शब्द *सुन्दर* होते हैं कठिन नहीं उनका प्रयोग करें वरना कल इस संस्कृति को *खुबसूरत* कहने वाले इसे *स्मरणीय* से *यादगार* बना डालेंगे…
अपनी संस्कृति की भाषा संस्कृत का रक्षण प्रतिक्षण अपनी बोलचाल में करना आरंभ करो नहीं तो *श्रीमान्* आपकी अति *विनम्रता* कल *नजाकत* में बदलकर *हूजूर* के शीश नवाएगी…
आज आप चाहे जिस पर *आरोप* लगा लें किन्तु कल यह *तोहमत* आपके ही सिर माथे आने वाली है…
आज जिस उर्दू की *कशिश* में तुम्हारे पूर्वज प्रेमचंद बनकर अपनी ही भाषा को कुरूपता दे गये… उसका सौन्दर्य और *आकर्षण* लौटाने को तुम्हे ही प्रयत्न करना है…
सही *अल्फाजों* के स्थान पर उपयुक्त संस्कृतनिष्ठ *शब्दों* का प्रयोग करना हमारे बच्चे भूलते जा रहे हैं और इसमें सबसे बड़ा योगदान अभिभावकों का ही है…
वेदऋषि
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